Tuesday, 19 June 2007

One night at the bay

क्या ये सही नही होता,
कि तुम मेरे साथ ना होते,
मे जगाता नही पूरी रात
और तुम तारे ना गिनते

मेरे आगोश मे जो सोयी थी
वो मेरी नींद थी
जिसे हम तकते रहे रात भर
मैं परेशां था
और वो पुरकशिस नींद मे आहे भर रही

ये शेर नही उस वक़्त की छाप हेई
जो तान्हायियो मे मेरे साथ तुम्हारे दर से गुजरा था
तुम तो सोये रहे बे परवाह हो कर
फकत ये रहा साथ हमारे साये की तरहा

ये जो रत का पहर गुजरा है
ये तेरी यादो का तोहफा था,
अभी काटने हे कुछ और पहर
तेरी सदा के लिए

हम भी क्या खता
कर बैठे इस उमर मे ए दोस्त,
तुम तो तुम ना थे,
हमसे भी हमे छीन लिया।

जितना तड़प रहा हु तेरी इक सदा के लिए ए दोस्त
खुदा करे की तुज़े उसका कतरा भी ना हो नसीब
क्योकी हम जानते है कि
रात कैसे कतरा दर कतरा गुज़री है रकीब।

विल .........................

1 comment:

Anonymous said...

nice piece of literature. keep writing.